बिडेन सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों के लिए कार्यकाल सीमा और आचार संहिता विचार कर रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट में बदलाव पर बिडेन के विचार
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुधारों की रूपरेखा तैयार करने का निर्णय लिया है, जिसमें न्यायाधीशों के लिए कार्यकाल की एक सीमा और एक आचार संहिता शामिल होगी। यह बिडेन के नीति के प्रति दृष्टिकोण को उल्लेखनीय रूप से बदलने का संकेत है क्योंकि पहले वे इस प्रकार के परिवर्तन के खिलाफ थे।
न्यायाधीशों के कार्यकाल सीमा की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के आजीवन कार्यकाल को समाप्त करने के विचार ने विभिन्न विशेषज्ञों और संविधान विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है। आजीवन कार्यकाल प्रणाली का समर्थन करने वाले इसे न्यायालय की स्वतंत्रता और तटस्थता सुनिश्चित करने का माध्यम मानते हैं, जबकि इसके विरोधी इसे आधुनिक समय की जरूरतों के प्रति अद्यतन करने का समर्थन करते हैं।
कार्यकाल सीमा लागू करने के पीछे तर्क यह है कि इससे न्यायाधीशों की जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व बढ़ेगा। यह न्यायालय में नए विचार और दृष्टिकोण लाने का अवसर भी प्रदान करेगा।
आचार संहिता की आवश्यकता
आचार संहिता की आवश्यकता इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि न्यायपालिका की निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। अन्य सरकारी शाखाओं की तरह, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए भी एक पूर्णतः निष्पक्ष और जिम्मेदार आचार संहिता लागू करना आवश्यक है।
राष्ट्रपति बिडेन का यह कदम न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और विश्वसनीयता स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। विपरीत दलों के बीच विचार-विमर्श की आवश्यकता इस बात को रेखांकित करती है कि न्यायालय सुधार जैसे जटिल मुद्दों पर निर्णय लेते समय bipartisan approach यानी कि द्विपक्षीय दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है।
प्रगतिशील विंग को साधने का प्रयास
यह पहल बोलती है कि बिडेन अपनी पार्टी के प्रगतिशील विंग को साधने के लिए इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। प्रगतिशील मंत्रियों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में सुधार से न्यायपालिका में विश्वास बहाल होगा और न्यायालय के भविष्य के गठन को संतुलित किया जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान स्थिति
रूढ़िवादी अधिरोहण स्थापित करने के बाद से सुप्रीम कोर्ट की संरचना को बदलने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। बिडेन के यह कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विगत वर्षों में नियुक्तियों के कारण कोर्ट में रूढ़िवादी जजों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसने प्रगतिशील और उदारवादी दृष्टिकोण वालों के बीच चिंता बढ़ा दी है।
पहले के प्रयास और वर्तमान दृष्टिकोण
अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के प्रारंभिक दिनों में ही बिडेन ने एक आयोग का गठन किया था जिसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट में संभावित सुधारों की जांच करना था। उस आयोग की रिपोर्ट ने यह दिखाया कि कार्यकाल सीमा या न्यायालय के विस्तार जैसे सुधारों की जटिलताओं को समझना महत्वपूर्ण है और इस पर द्विपक्षीय चर्चाओं की आवश्यकता है।
हालांकि, प्रस्तावित परिवर्तन अभी भी विकास के चरण में हैं और कुछ हफ्तों तक इन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद, न्यायालय सुधार पर बिडेन का ध्यान न्यायपालिका की भविष्यवाणी को समृद्ध और संतुलित करने के उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।