RBI ने लगातार आठवीं बार रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखा: जानिए इसके पीछे की वजहें और असर
भारतीय रिजर्व बैंक का महत्त्वपूर्ण निर्णय
आज का दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्त्वपूर्ण था जब भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट को लगातार आठवीं बार 6.5% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि यह कदम मौद्रिक नीति को संतुलित बनाए रखने और वर्तमान आर्थिक परिस्थिति को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से लिया गया है।
महँगाई और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन
दास ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति का यह निर्णय मौजूदा महँगाईदर और आगामी आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में लिया गया है। उन्होंने बताया कि महँगाई दर अभी तक लक्ष्य के अंदर है, लेकिन खाद्य महँगाई को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं। रिजर्व बैंक का लक्ष्य महँगाई को 4% के नीचे रखने का है, जिसे ध्यान में रखते हुए इस निर्णय को लिया गया है।
खाद्य महँगाई और मॉनसून पर निर्भरता
खाद्य महँगाई के मामले में, MPC ने कहा कि इसे बारीकी से निगरानी की आवश्यकता है। भारतीय कृषि उत्पादन काफी हद तक मॉनसून पर निर्भर है, और इस वर्ष के दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की स्थिति को देखते हुए, कृषि उत्पादन पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। अगर मॉनसून सही रहता है, तो खाद्य महँगाई में कमी आ सकती है, वरना इसमें बढ़ोतरी भी हो सकती है।
वित्तीय स्थिरता और विदेशी मुद्रा प्रवाह
रिजर्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और विदेशी मुद्रा प्रवाह को नियमित करने के महत्त्व पर भी जोर दिया है। यह देखा जा रहा है कि विदेशी मुद्रा विनिमय दरों में अस्थिरता का सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, जिसे संयत बनाए रखने के प्रयास जारी हैं।
शेयर बाजार में सुधार
इस निर्णय के बाद भारतीय शेयर बाजारों में भी उल्लेखनीय सुधार देखा गया। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों इंडेक्स में क्रमशः 1,300 और 400 अंकों की बढ़त दर्ज की गई, जो निवेशकों में एक नई आशा की लहर का संकेत है।
आर्थिक वृद्धि की उम्मीद
आरबीआई ने 2024-25 वित्तीय वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर को 7.5% पर प्रोजेक्ट किया है। यह निर्णय न केवल महँगाई को नियंत्रण में रखने के प्रयासों को प्रोत्साहित करेगा, बल्कि आर्थिक वृद्धि के दरवाजों को भी खोलेगा।
रेपो रेट क्या है और इसका महत्व
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। इसका सीधा प्रभाव बैंकिंग प्रणाली और मौद्रिक नीति पर पड़ता है। यदि रेपो रेट कम है, तो बैंकों को केंद्रीय बैंक से सस्ता धन मिलता है, जिसे वे जनता को कम ब्याज दरों पर ऋण देने में सक्षम रहते हैं। वहीं, रेपो रेट बढ़ने से बैंकों के लिए धन महंगा हो जाता है, जिससे बाजार में धन की उपलब्धता कम होती है और महँगाई नियंत्रण में रहती है।
आमतौर पर रेपो रेट के प्रभाव
रेपो रेट में बदलाव करने का आरबीआई का उद्देश्य महँगाई और आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखना होता है। इससे उद्योगों और उपभोक्ताओं को ऋण की उपलब्धता और लागत पर असर पड़ता है। रेपो रेट अधिक होने से कर्ज की लागत बढ़ जाती है, जिससे खर्च करने की प्रवृत्ति घटती है और महँगाई में गिरावट आती है।
वर्तमान स्थिति का विश्लेषण
वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए, रेपो रेट को अपरिवर्तित रखने का निर्णय अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। इससे महँगाई पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी और आर्थिक वृद्धि को भी बल मिलेगा। साथ ही, यह निर्णय न केवल घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सक्षम होगा, बल्कि विदेशी मुद्रा विनिमय दरों को भी स्थिर रखने में सहायक होगा।
भविष्य की संभावनाएँ
मॉनसून की स्थिति और खाद्य महँगाई के आंकड़ों का आगामी समय में गहन विश्लेषण किया जाएगा। रेपो रेट को भविष्य में बदलने का निर्णय इन आंकड़ों और महँगाई दर की निगरानी के आधार पर ही लिया जाएगा। मौजूदा समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को सही दिशा देने के लिए यह कदम संतुलित और प्रभावी साबित होगा।
इस समाचार के माध्यम से यह स्पष्ट है कि भारतीय रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति पर लगातार नजर रख रहा है और आर्थिक स्थिरता एवं वृद्धि के लिए सही कदम उठा रहा है।