रिपोर्ट: शुभम
सिर्फ तीन दिनों की बारिश ने देहरादून की रफ्तार तोड़ दी। 15 से 17 सितंबर 2025 के बीच हुई तेज बारिश और 16 सितंबर को हुए देहरादून बादल फटना ने शहर को फ्लैश फ्लड और भूस्खलन की चपेट में ला दिया। 17 लोगों की जान जा चुकी है और 13 का अभी पता नहीं चल पाया है। कई मोहल्ले कट गए, सड़कें बह गईं और नदी किनारे की इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं।
क्या हुआ: कब, कहाँ, कैसे
क्लाउडबर्स्ट 16 सितंबर की सुबह घटा और कुछ ही घंटों में पानी का तेज बहाव निचले इलाकों में घुस आया। टपवन सबसे ज्यादा डूबा, घरों में सीने तक पानी भर गया। सहस्रधारा और आईटी पार्क के आसपास की सड़कों पर घुटनों से ऊपर पानी रहा, जिससे दफ्तरों और कॉलोनियों तक पहुंच टूट गई। जहां-जहां पानी उतरा, वहां मोटी परत में कीचड़ और मलबा दिखा।
तामसा नदी उफान पर आ गई। बहाव ने किनारे बनी कई संरचनाओं की नींव हिला दी। कुछ हिस्सों में रिटेनिंग वॉल टूटने से पानी सीधे बस्तियों में घुसा। लगातार बारिश के बीच पहाड़ी ढलानों पर दरारें बढ़ीं और कई जगह छोटे-बड़े भूस्खलन हुए। इससे आवागमन बाधित हुआ और कुछ बस्तियों तक एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाईं।
प्रशासन ने बताया कि मरने वालों की संख्या 17 तक पहुंच गई है, जबकि 13 लोग अब भी लापता हैं। रेस्क्यू टीमें नाव और रस्सों की मदद से छतों और ऊंचे स्थानों पर फंसे लोगों को निकाल रही हैं। कई परिवारों को सामुदायिक भवनों और स्कूलों में बनाए गए अस्थायी राहत शिविरों में शिफ्ट किया गया है।
पानी भराव से कई इलाकों में एहतियातन बिजली सप्लाई काटनी पड़ी। पेयजल लाइनों में गाद घुसने की शिकायतें आईं, जिससे टैंकरों पर निर्भरता बढ़ी। मोबाइल नेटवर्क कई जेबों में कमजोर पड़ा, जिससे मदद मांगने में देर लगी। शुरुआती आकलन कहता है कि कच्चे और पुराने मकानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
मौसम विभाग ने कहा है कि यह घटना लौटते मॉनसून की तीव्रता के साथ जुड़ी है—कम समय में बहुत ज्यादा बारिश। पहाड़ी भू-आकृति, संकरी घाटियां और शहर का तेज फैलाव मिलकर नुकसान बढ़ा देते हैं। यही वजह है कि सहस्रधारा जैसी घाटी वाली साइट्स और आईटी पार्क के निचले हिस्से ज्यादा प्रभावित हुए।
राहत-बचाव, जोखिम और आगे की राह
एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर तैनात हैं। पुलिस, फायर और स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर रेस्क्यू चल रहा है। ऊंचे बहाव वाले इलाकों में मोटरबोट और लाइफ जैकेट दी गई हैं, वहीं मलबा हटाने के लिए जेसीबी और अर्थमूवर लगाए गए हैं। जिला प्रशासन ने 24x7 कंट्रोल रूम सक्रिय किया है और ड्रोन से नुकसान का मैपिंग सर्वे शुरू हुआ है।
कई स्कूल-कॉलेजों को एहतियातन बंद रखा गया, ताकि बच्चों और स्टाफ को जोखिम में न जाना पड़े। पर्यटन गतिविधियां धीमी की गईं—खासकर नदियों और झरनों के पास। स्थानीय निकायों ने नालों और जलनिकासी चैनलों से मलबा हटाने का अभियान तेज किया है, ताकि अगली बारिश में पानी तेजी से निकल सके।
मुआवजे पर भी काम चल रहा है। आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों को मानक के अनुसार अनुग्रह सहायता दी जाएगी। जिनके घर आंशिक या पूरी तरह टूटे, उनके लिए अलग से सर्वे और पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू की गई है।
क्यों इतना नुकसान? पहाड़ों में बारिश का पानी नीचे उतरते वक्त संकरी धाराओं में सिमट जाता है। जहां नदी-नालों पर कब्जा या निर्माण हुआ, वहां बहाव की जगह घट गई और पानी ने वैकल्पिक रास्ता तलाशते हुए बस्तियों को डूबो दिया। शहरी बाजुओं में पुरानी जलनिकासी क्षमता नई बारिश की तीव्रता झेल नहीं पाती।
विज्ञान क्या कहता है? गर्म होती हवा ज्यादा भाप रोकती है और जब यह गिरती है तो कम समय में बहुत ज्यादा पानी देता है। आईआईटी रुड़की के 2023 के एक अध्ययन ने हिमालयी पट्टी में बहुत भारी बारिश की घटनाओं में बढ़ोतरी का संकेत दिया था। उत्तराखंड में 2013 के केदारनाथ त्रासदी और 2021 की चमोली आपदा जैसी घटनाएं याद दिलाती हैं कि हाई-रिस्क जोन में सुरक्षा मानकों की सख्ती जरूरी है।
अभी क्या खतरे बचे हैं? भूस्खलन की ढलानें बारिश के बाद भी कमजोर रहती हैं। नदी किनारे की मिट्टी कटी हुई है, जिससे मामूली बहाव भी किनारों को और तोड़ सकता है। जहां दीवारों में दरारें दिख रही हैं वहां वापसी से पहले तकनीकी जांच कराना ठीक रहेगा। मौसम विभाग ने अगले 24–48 घंटों में छिटपुट बारिश और कुछ जगह तेज बौछारों की संभावना जताई है, इसलिए नाले-नदियों के पास जाने से बचें।
लोगों के लिए जरूरी सावधानियां:
- पानी उतरने तक घर की मेन बिजली सप्लाई चालू न करें; पहले इलेक्ट्रिशियन से जांच कराएं।
- पेयजल उबालकर पिएं; टंकी और फिल्टर साफ करें, गाद निकलवाएं।
- बहते पानी को पैदल पार करने की कोशिश न करें; 6–12 इंच का बहाव भी गिरा सकता है।
- मलबे और गड्ढों से सावधान रहें; कीचड़ के नीचे खुली नालियां हो सकती हैं।
- जरूरी दस्तावेज, दवाइयां और पावर बैंक एक वाटरप्रूफ बैग में साथ रखें।
प्रशासन ने कहा है कि लापता लोगों की तलाश युद्धस्तर पर जारी है। जैसे-जैसे बारिश थमेगी, टीमें अंदरूनी और कटे हुए इलाकों तक तेजी से पहुंचेंगी। शहर के जलनिकासी नक्शे को अपडेट करने, बस्तियों की संवेदनशीलता का पुनर्मूल्यांकन करने और नदी-नालों के किनारे निर्माण नियमों की समीक्षा का प्रस्ताव भी आगे बढ़ाया जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं—अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, सायरन नेटवर्क, सामुदायिक ड्रिल और इमरजेंसी रूट की स्पष्ट पहचान से ऐसे हादसों में जान-माल का नुकसान कम किया जा सकता है।
फिलहाल, मेडिकल टीमों, सफाई कर्मियों और रेस्क्यू वालंटियरों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उनका लक्ष्य है—हर फंसे व्यक्ति तक पहुंचना, बीमारियों को रोकना और शहर को धीरे-धीरे सामान्य पटरी पर लाना।
reshveen10 raj
सितंबर 17, 2025 AT 18:39भाइयों, इस आपदा में सबको एकता दिखानी चाहिए। तुरंत मदद के लिए स्थानीय समितियों में जुड़ो।
Navyanandana Singh
सितंबर 24, 2025 AT 22:53बारिश की ताकत हमें प्रकृति की अनदेखी चेतावनी की याद दिलाती है। जब बादल फटते हैं, तो दिल भी कुछ फट जाता है, है ना? इस दुखद घटना से हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके। हम सबको मिलकर राहत कार्य में सहयोग देना चाहिए, क्योंकि एक हाथ से सब सम्भव नहीं। याद रखें, हर किसी की छोटी‑सी कोशिश भी बड़ी आशा बनती है।
monisha.p Tiwari
अक्तूबर 2, 2025 AT 03:07सभी को आशा है कि जल्द ही बचाव टीमें सभी लापता लोगों को ढूंढ लेगी। परिवारों को धैर्य रखना चाहिए और आवश्यक चीज़ें तैयार रखनी चाहिए। इस संकट में हम सभी का समर्थन बहुत मायने रखता है।
Nathan Hosken
अक्तूबर 9, 2025 AT 07:21उच्चतम जलप्रवाह के साथ, हाइड्रो‑मेट्री डेटा इंगित करता है कि तामसा नदी की प्रवाह गति सीमा से परे थी। जलनिकासी इन्फ्रास्ट्रक्चर में मौजूद त्रुटियों ने फ्लैश‑फ़्लड की संभावनाओं को बढ़ा दिया। मौजूदा सिविल‑इंजीनियरिंग मानकों की समीक्षा आवश्यक है। राजस्व विभाग को भी इस आपदा के आर्थिक प्रभावों का आकलन करना चाहिए।
Manali Saha
अक्तूबर 16, 2025 AT 11:35दोस्तों!!! यह राइस्ट्रिंग टाइम है, हर कोई तुरंत इमरजेंसी किट पकड़े!!! बारिश थमी नहीं तो फिर क्या, जल स्तर बढ़ता रहेगा!!! हम सबको मिलकर इस बाढ़ को मात देनी है!!! बचाव में कोई भी कोशिश छोटे नहीं होती!!!
jitha veera
अक्तूबर 23, 2025 AT 15:49अर्य, तुम तो बस शोर मचा रहे हो, पर असली समस्या का हल नहीं दे पा रहे। सभी शोर-शराबे से काम नहीं चलेगा, हमें ठोस योजना चाहिए। जलनिकासी का बुनियादी ढांचा खड़ा नहीं है, इसलिए हर बार यही हंगामा। तुम जैसे एंटीसाइकलिस्ट की बजाए इंजीनियरिंग रिपोर्ट देखनी चाहिए। नहीं तो अगली बाढ़ में फिर वही नतीजा रहेगा।
Sandesh Athreya B D
अक्तूबर 30, 2025 AT 20:03ओह, बाढ़ का मज़ा ही कुछ और है, है ना? शहर को नया पैडल बनाना चाहिए, क्योंकि सब कुछ जल में डूब रहा है।