अमेरिका की नई छात्र वीजा नीति से भारतीय छात्रों पर 50% गिरावट

जब यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने 28 अगस्त 2025 को नई ड्राफ्ट रेगुलेशन जारी की, तो भारत सहित कई देशों के छात्रों ने अपना कॉलेज का कोर्स छोड़ने की सोच ली। नई व्यवस्था F‑1 और J‑1 वीज़ा धारकों को चार साल की स्टे सीमा लगा देती है, जिसके बाद उन्हें ‘एक्सटेंशन ऑफ स्टे’ (EOS) के लिए आवेदन करना पड़ेगा। इससे एक मिलियन से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ेगा, जिनमें 330,000 से अधिक भारतीय छात्र शामिल हैं।
नीति का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पहले ‘ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस’ (D/S) सिस्टम से छात्र अपने कोर्स के पूरे समय तक यू.एस. में रह सकते थे, बशर्ते वे पूर्णकालिक और वीज़ा नियमों के अनुरूप हों। यह प्रथा लगभग पाँच दशकों से चलती आ रही थी। ट्रम्प प्रशासन ने 2024‑25 के अकादमिक सत्र में ही कई कठोर कदम उठाए, जिसमें वीज़ा साक्षात्कार निलंबित करना, सामाजिक मीडिया जांच को कड़ा करना और 19 देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगाना शामिल था। इन उपायों की नींव पर ही वर्तमान ड्राफ्ट रेगुलेशन बना है।
ड्राफ्ट रेगुलेशन के मुख्य बिंदु
- F‑1 और J‑1 वीज़ा धारकों के लिए चार साल की अधिकतम अवधि निर्धारित।
- छात्रों को प्रत्येक वर्ष ‘एक्सटेंशन ऑफ स्टे’ (EOS) के लिए DHS को प्रलेखित कारण प्रस्तुत करने होंगे।
- त्रैमासिक आधार पर छात्रों की “अमेरिकन और वेस्टर्न वैल्यूज़” के साथ संगतता की जांच अनिवार्य।
- नए H‑1B वीज़ा पर $100,000 का शुल्क, जो 19 सितंबर 2025 से लागू होगा।
- उच्च शिक्षा संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय छात्रों की कुल एन्रोलमेंट का 15% से अधिक न रखने का निर्देश, और किसी एक देश से अधिकतम 5% तक ही स्वीकार्य।
ट्रम्प प्रशासन की विशिष्ट विश्वविद्यालय‑विशेष निर्देश
इन प्रतिबंधों को लागू करने हेतु प्रशासन ने नीचे दिए गए नौ विश्व‑प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को लक्षित किया: University of Arizona, Brown University, Dartmouth College, Massachusetts Institute of Technology (MIT), University of Pennsylvania, University of Southern California (USC), University of Texas, University of Virginia और Vanderbilt University। इन संस्थानों को प्रत्येक देश से अधिकतम 5% छात्र रहने की सीमा का पालन करना होगा, जिससे भारतीय और चीनी छात्रों को भारी बाधा का सामना करना पड़ रहा है।

भारतीय छात्रों पर सीधा असर
डेटा के अनुसार, अगस्त 2024 में यू.एस. में पहुँचने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 74,825 थी, जबकि अगस्त 2025 में यह घटकर 41,540 रह गयी। जुलाई के आंकड़े भी समान रूप से गिरावट दिखाते हैं: 24,298 से घटकर 13,027। कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय छात्रों का आगमन 19.2% (अगस्त) और 28.5% (जुलाई) तक घटा। यह गिरावट विशेष रूप से STEM क्षेत्रों में स्पष्ट है, जहाँ पहले भारतीय छात्रों ने ग्रेजुएट प्रोग्राम में बहुगुणी योगदान दिया था।
वारंगल से आए एक छात्र ने Deccan Chronicle को बताया, “अगर विश्वविद्यालय हमारी जानकारी सरकार को भेजता है और वह हमारे विचारों को ‘अमेरिकन वैल्यूज’ से मेल नहीं खाता, तो वीज़ा या डिपोर्टेशन का जोखिम बड़ा है।” इसी तरह, हैदराबाद से विष्णनाथ रेड्डी ने कहा, “इंटरनेशनल छात्रों, खासकर भारत से, अमेरिकी विश्वविद्यालयों की रीढ़ हैं। 5% की सीमा लगाकर ट्रम्प ने एक ‘फर्स्ट‑कम‑फर्स्ट‑सेव्ड’ पॉलिसी लागू कर दी, जो प्रतिभाशाली छात्रों को अनुचित रूप से दंडित करती है।”
विश्वविद्यालयों की प्रतिक्रिया और चुनौतियाँ
सेंट लुईस यूनिवर्सिटी ने अपनी अंतरराष्ट्रीय छात्र संख्या में 45% गिरावट दर्ज की, यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में यह 25% तक सीमित रही, और यूनिवर्सिटी ऑफ बफ़ैलो ने केवल STEM ग्रेजुएट छात्रों में ही 1,000 से अधिक छात्रों को खो दिया। कई संस्थानों ने अब “वेस्टर्न वैल्यूज़” की स्क्रीनिंग प्रक्रिया को लेकर छात्र प्रतिबंध का विरोध किया है, क्योंकि इससे अनुसंधान निधियों और प्रोजेक्ट सहयोगों पर भी असर पड़ेगा।
इंस्टिट्यूट फॉर प्रोग्रेस और NAFSA द्वारा किए गए सर्वे में पता चला कि 53% अंतरराष्ट्रीय छात्र H‑1B वेतन-आधारित निर्धारण पर आवेदन न करेंगे, 54% OPT के बिना प्रवेश नहीं लेंगे और 57% OPT समाप्त होने पर यू.एस. में रहने का विचार नहीं करेंगे। 49% ने कहा कि “ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस” हट जाने से वे पहले ही प्रवेश नहीं लेते। यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि नीतियों का प्रभाव केवल वीज़ा अवधि तक सीमित नहीं, बल्कि छात्रों के करियर विकल्पों तक भी फैल रहा है।

आगे क्या हो सकता है?
ड्राफ्ट रेगुलेशन अभी सार्वजनिक टिप्पणी चरण में है, लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस पर कठोर संशोधन संभव नहीं। अगर लागू हो गया, तो यू.एस. शिक्षा प्रणाली में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का हिस्सा पिछले दशक की तुलना में 10% से नीचे गिर सकता है। इससे न केवल विश्वविद्यालयों की आय घटेगी, बल्कि प्रमुख विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए जरूरी प्रतिभा की कमी भी महसूस होगी। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चीन और भारत जैसे देशों की छात्र संख्याएं घटने पर, यू.एस. को “ऑनलाइन शिक्षण” या “डुअल डिग्री” प्रोग्राम जैसी वैकल्पिक रणनीतियों को अपनाना पड़ेगा।
संयुक्त राज्य विदेश मंत्रालय ने सभी गैर‑इमिग्रेंट वीज़ा आवेदकों के लिए साक्षात्कार शेड्यूलिंग निर्देश तुरंत अपडेट कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि नई नीति आधिकारिक रूप से लागू होने से पहले छात्रों को वैकल्पिक मार्गों की तलाश करनी पड़ेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या नई चार‑साल की सीमा का मतलब यह है कि मैं डिग्री पूरी नहीं कर पाऊँगा?
यदि आपका कोर्स चार साल से अधिक समय लेता है, तो आपको DHS से ‘एक्सटेंशन ऑफ स्टे’ (EOS) के लिए आवेदन करना होगा। यह प्रक्रिया अब अधिक कड़ी और समय‑सप्लाई वाली है, इसलिए कई छात्र समय सीमा को पूरा करने से पहले ही विकल्प बदलते दिख रहे हैं।
भारत से प्रतिभागी छात्रों पर 5% कैप का क्या असर पड़ेगा?
काफी भारतीय छात्र अब शीर्ष विश्वविद्यालयों में प्रवेश नहीं ले पाएंगे, क्योंकि हर विश्वविद्यालय को कुल प्रवेश का केवल 5% तक भारत से ही सीमित करना पड़ेगा। परिणामस्वरूप कई छात्र अन्य देशों या ऑनलाइन प्रोग्राम की ओर रुख कर रहे हैं।
हाइड्रोजन काम्पनी H‑1B वीज़ा शुल्क 100,000 डॉलर कैसे प्रभाव डालेगा?
यह शुल्क कई छात्रों को नौकरी के बाद यू.एस. में ठहरने से रोकता है। खासकर STEM क्षेत्र में जहाँ उन्होंने पढ़ाई के बाद रोजगार पाने की योजना बनायी थी, वहाँ से इन छात्रों को विदेश में नौकरी ढूँढनी पड़ेगी।
क्या ये नई नीतियां अमेरिकी विश्वविद्यालयों की रिसर्च फंडिंग को नुकसान पहुंचाएंगी?
बहुत हाँ। अंतरराष्ट्रीय छात्र अक्सर ग्रेजुएट रिसर्च फंड, लैब असिस्टेंटशिप और प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेशन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। उनकी कमी से कई बड़े अनुसंधान प्रोजेक्ट और फंडिंग अनुदान प्रभावित हो सकते हैं।
क्या इस नीति के खिलाफ कोई कानूनी चुनौती मिलने की संभावना है?
संभावना है। कई यू.एस. विश्वविद्यालय और छात्र समूह इस ड्राफ्ट रेगुलेशन के विरुद्ध सार्वजनिक टिप्पणी और कानूनी चुनौती देने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि यह शिक्षा के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।