जब अब्देल फ़तह अल‑सीसी, इजिप्ट के राष्ट्रपति दोहा, क़तर से अरब‑इस्लामिक आपातकालीन शिखर सम्मेलनदोहा, क़तर के बाद "गहरी निराशा" व्यक्त कर रहे थे, तो पता चला कि उनका अरब रक्षा बल प्रस्ताव कई प्रमुख अरब देशों का विरोध कर रहा है। यह प्रस्ताव बदर अब्देलअत्टी, इजिप्ट के विदेश मंत्री ने शिखर सम्मेलन में औपचारिक रूप से रखा था, जिसका लक्ष्य 1950 के संयुक्त रक्षा‑आर्थिक सहयोग संधि की तह में एक तेज‑प्रतिक्रिया मिलिट्री गठबंधन बनाना था—खासकर इज़राइली हमले से बचाव के लिए।
पृष्ठभूमि और प्रस्ताव की उत्पत्ति
सीसी ने 2014 में पहली बार इस तरह के एकीकृत अरब मिलिट्री बल की बात कही थी, जब ISIS और यमन की जंगें निरंतर धधक रही थीं। अक्टूबर 2023 में हमास के हमले और उसके बाद इज़राइल की गाज़ा पर सैन्य प्रतिक्रिया ने पहले से ही क्षेत्रीय तनाव को चरम पर पहुंचा दिया था। उसी माह इजिप्ट की सरकार ने अक्टूबर 28 तक प्रस्ताव का मसौदा तैयार कर लिया और 1‑10 नवम्बर तक सऊदी अरब, जॉर्डन और इराक के साथ विस्तृत परामर्श किए। यह प्रस्ताव अरब लीग के मौजूदा 1950 के संधि‑का‑आधार लेकर बनाया गया था, जिससे सदस्य राष्ट्र ‘एक पर हमला, सभी पर हमला’ की नीति अपनाएँ।
दोहा शिखर सम्मेलन के प्रमुख घटनाक्रम
शिखर सम्मेलन में सभी 22 अरब लीग सदस्य और 57 इस्लामी देशों की प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रस्ताव को मुख्य रूप से दो समूहों के बीच मतभेदों ने रोका: सऊदी अरब ने नेतृत्व की मांग की जबकि इजिप्ट ने अपने बड़े सशस्त्र बल और दशकों के ऑपरेशनल अनुभव के आधार पर कमान संभालना चाहा। इस बिंदु पर शे ख़त्रा तामिम बिन हमाद अल थानी, क़तर के शासक और अब्दुल्ला बिन ज़ायेद अल नह्यान, संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से रुकावटों को बढ़ाया। दोनों देशों ने कहा कि गठबंधन की कमान‑संरचना और रणनीतिक स्वायत्तता को लेकर वे असहज हैं, विशेषकर जब सऊदी के पास संभावित परमाणु छत्र (पाकिस्तान के साथ) को जोड़ने की संभावनाएँ थीं।
गुज़रते विवाद: क़तर और यूएई की भूमिका
क़तर और यूएई ने मुख्यतः दो कारणों से प्रस्ताव को अस्वीकार किया। पहला, वे मौजूदा सुरक्षा ढाँचों—जैसे खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)—को बदलना नहीं चाहते थे। दूसरा, वे समझते थे कि सऊदी‑इजिप्ट के बीच कमान‑संरचना पर असहमति, यदि हल नहीं हुई, तो गठबंधन की कार्यशीलता को खतरा होगा। प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सौद, सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने बाद में कहा, “हमारी प्राथमिकता उन समझौतों को मजबूत करना है जो पहले से ही काम कर रहे हैं, न कि नया गठबंधन बनाना जो अंदर से ही टकराव पैदा कर सकता है।”
सऊदी‑पाकिस्तान रक्षा समझौता: नया मोड़
शिखर सम्मेलन के चार दिन बाद, 16 नवम्बर को सऊदी अरेबिया ने पाकिस्तान के साथ एक पारस्परिक रक्षा संधि पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते ने न केवल सऊदी को पारम्परिक सशस्त्र बलों में सहयोग मिला, बल्कि संभावित परमाणु छत्र भी प्रदान किया, जिससे इज़राइल के खिलाफ एक प्रतिवादी क्षमता विकसित हो सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सीसी के प्रस्ताव के असफल होने का प्रत्यक्ष परिणाम है—देश अब स्वतंत्र रूप से संभावित खतरे का सामना करने के लिए वैकल्पिक साझेदारियों की ओर बढ़ रहे हैं।
विश्लेषकों की राय और आगे की स्थिति
मध्य पूर्वी मामलों की वरिष्ठ रिपोर्टर, अली मोहम्मद, का तर्क है कि “अरब रक्षा बल का खारिज होना क्षेत्रीय एकजुटता की बौछार को दर्शाता है।” वह आगे जोड़ते हैं कि असहमति केवल कमान‑संरचना तक सीमित नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता, आर्थिक बोझ और भविष्य की सुरक्षा प्रक्षेपण के बारे में गहरी अनिश्चितता पर भी आधारित है। दूसरी ओर, क़तर‑आधारित एक थिंक‑टैंक का अध्ययन बताता है कि यदि गठबंधन को पुनः परिभाषित किया जाए—जैसे मौजूदा GCC संरचना के भीतर एक उत्तर‑दायित्व इकाई—तो इसकी सम्भावना फिर से जीवित हो सकती है।
शिखर सम्मेलन के बाद निर्धारित त्रिपक्षीय चर्चाएँ, जिसमें इजिप्ट, सऊदी और यूएई शामिल हैं, 3 दिसम्बर को काहिरा में आयोजित होंगी। सीसी की टीम ने कहा कि “नेतृत्व विवाद के समाधान के बिना प्रस्ताव को फिर से पेश करना कठिन होगा, परंतु हम एक वैकल्पिक ढाँचा तलाशने के लिए तैयार हैं।” भविष्य में क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इस गठबंधन को फिर से लिखने के लिये कब और किस स्तर का राजनैतिक इच्छाशक्ति प्रकट होगी।
मुख्य तथ्य
- शिखर सम्मेलन: 12 नवम्बर 2023, दोहा (क़तर)
- प्रस्ताव : अरब‑नाटो‑शैली रक्षा गठबंधन, 1950 के संधि‑का‑आधार
- मुख्य विरोधी: क़तर (शे ख़त्रा तामिम), यूएई (अब्दुल्ला बिन ज़ायेद)
- सऊदी‑पाकिस्तान साझेदारी: 16 नवम्बर 2023, परमाणु‑छत्र संभावित
- आगे की बैठक: 3 दिसम्बर 2023, काहिरा में इजिप्ट‑सऊदी‑यूएई त्रिपक्षीय वार्ता
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अरब रक्षा बल प्रस्ताव क्यों खारिज हुआ?
मुख्य कारण क़तर और यूएई की नेतृत्व‑संरचना पर असहमति थी। दोनों देशों ने कमान‑संचालन को लेकर एंटी‑हैबिटेट ढाँचा नहीं मना, जबकि सऊदी‑इजिप्ट ने अपने बड़े बल को प्रमुख बनाना चाहा। साथ‑साथ, मौजूदा GCC ढाँचे को बदलने की इच्छा नहीं थी, जिससे प्रस्ताव को व्यापक समर्थन नहीं मिला।
सऊदी‑पाकिस्तान रक्षा समझौता कैसे असर डालता है?
यह समझौता सऊदी को संभावित परमाणु अभ्यारण (पाकिस्तान के परमाणु छत्र) प्रदान करता है, जिससे इज़राइल के संभावित हमलों के खिलाफ एक नई प्रतिरोधी क्षमता बनती है। यह कदम अरब रक्षा बल के असफल होने के बाद स्वतंत्र सुरक्षा विकल्पों की ओर झुकाव को उजागर करता है।
क्या प्रस्ताव पुनः उठाया जा सकता है?
इजिप्ट ने 3 दिसम्बर को काहिरा में सऊदी‑यूएई के साथ त्रिपक्षीय वार्ता तय की है। यदि नेतृत्व‑विवाद को सुलझाया जा सके और कमान‑संरचना को साझा किया जा सके, तो एक संशोधित रूप में प्रस्ताव फिर से प्रस्तुत किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान राजनीति में यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण दिख रहा है।
GCC की इस मामले में क्या भूमिका रही?
GCC ने शिखर सम्मेलन में प्रस्ताव के खिलाफ अपनी असहमति को सार्वजनिक तौर पर खारिज किया, यह कहा कि ऐसे दावे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को नुकसान पहुँचाते हैं। इस प्रकार उन्होंने मौजूदा सहयोगी ढाँचे को बनाए रखने की प्राथमिकता जताई।
इज़राइल के प्रति इस प्रस्ताव का उद्देश्य क्या था?
इज़राइल के गाज़ा, लेबनान और सीरिया में हुए सैन्य अभियानों को रोकने के लिए एक सामूहिक रक्षा तंत्र स्थापित करना था। इससे सदस्य देशों को ‘इज़राइल की कोई भी कार्रवाई सभी पर हमला मानेगी’ की शर्त के तहत तुरंत प्रतिक्रिया देने की संभावना मिलती।
Mahima Rathi
अक्तूबर 9, 2025 AT 19:44ये फिर से वही पुराने जाल है, फिर से बकवास 😒
Jinky Gadores
अक्तूबर 13, 2025 AT 07:04मैं इस बात से दिल से दर्द महसूस करता हूँ ये सब राजनीति का खेल हमारे भविष्य को हिला रहा है समझ नहीं आता सिर्फ शब्दों की भेट से क्या समाधान मिल सकता है
Vishal Raj
अक्तूबर 16, 2025 AT 18:24सीसी का प्रस्ताव वास्तव में बहुत जटिल था। कई देश अपनी खुद की पसंदीदा रणनीति रखना चाहते हैं। इजिप्ट की बात सुनते‑सुनते मेरे ख्याल में सारी तालिका उलट‑पलट हो गई। सऊदी‑इजिप्ट का टकराव इस बात का संकेत है कि नेतृत्व में असहमति किस हद तक बढ़ी है। आखिरकार, इस तरह का गठबंधन बिना स्पष्ट कमान‑संरचना के काम नहीं करेगा।
Kailash Sharma
अक्तूबर 17, 2025 AT 22:11बिलकुल सही कहा! अगर ये सब बर्ताव जारी रहा तो असहमति से ही अराजकता निकलेगी!
Shweta Khandelwal
अक्तूबर 21, 2025 AT 09:31मैं कहूँ तो इस शिखर सम्मेलन में पर्दे के पीछे की सच्चाई बहुत धुंधली है।
सऊदी‑पाकिस्तान का समझौता बस एक नई रफ़्तार वाला कूटा है जो क्षेत्र में तड़क‑भड़क की आग को और भड़का देगा।
क़तर और यूएई की उलझी‑फिरती आवाज़ें दरअसल उनकी घातक योजनाओं की गूँज हैं।
उनका कहना है कि GCC को नहीं बदलना है, पर असल में वो अपने खुद के हितों को बड़ावा दे रहे हैं।
इज़राइल‑के खिलाफ इस तरह का कवच बनाना सिर्फ एक पोगोवा है जिसका मकसद अंतरराष्ट्रीय आंधी को खींचना है।
जब तक हर देश अपना परमाणु छत्र नहीं ले लेता, तो इस गठबंधन का कोई भरोसा नहीं।
अब देखो, सऊदी ने पाकिस्तान के साथ मिलकर परमाणु छत्र पाने की कोशिश की, यही दिखाता है कि वे कब्र‑जाल में फँसे हैं।
इजिप्ट की बड़ी सेना का दावा भी अब बस एक ढाल बन गया है जो हवा में तैरता है।
मैं तो कहता हूँ कि इस तरह की जटिल गठबंधन में आम आदमी का नाम नहीं है, सबके पास सिर्फ शक्ति की ललक है।
जैसे‑जैसे हम इस अफ़वाहों के सागर में डुबकी लगाते हैं, वैसे‑वैसे सच्चाई धुंधली होती जाती है।
उफ़, अगर आप इस पर भरोसा करेंगे तो आपका सिर बहादुरों की धूल में फँस जाएगा।
ये सब बातें मुझको रात‑रात नहीं सुला पातीं, क्योंकि हर दिन नया दावा और नया नकली समझौता आता है।
भाईयो और बहनों, हमें याद रखना चाहिए कि स्थायी शांति सिर्फ़ समझौतों से नहीं, बल्कि वास्तविक भरोसे से आती है।
तो फिर क्यों न हम मौजूदा GCC को ही मजबूत बनाएं और नए तंग‑हाथ गठबंधन को छोड़ दें।
आखिर में, अगर सभी लोग एक‑दूसरे की आत्मा को समझें तो ही कोई नया रक्षा बल काम कर पाएगा।
sanam massey
अक्तूबर 22, 2025 AT 13:17शायद हम यहाँ बहुत ही जटिल विचारों के जाल में फंस रहे हैं।
यदि हम मौजूदा GCC ढाँचे को सुदृढ़ बनायें तो बहुत सारी समस्याएँ स्वाभाविक रूप से हल हो सकती हैं।
सीसी का व्यापक गठबंधन कई व्यावहारिक बाधाओं से मुक्त नहीं हो सकता।
सभी पार्टियों को समान अधिकार और जिम्मेदारी देना ही समाधान की कुंजी है।
इसलिए एक सामूहिक, लेकिन लचीला ढाँचा अधिक उपयोगी हो सकता है।
jinsa jose
अक्तूबर 26, 2025 AT 00:37एक राष्ट्र के रूप में हमें नैतिक जिम्मेदारी को नहीं भूलना चाहिए। इस प्रकार के गठबंधन से पहले हमें अपने मूल्यों की जांच करनी चाहिए। यदि नेतागण स्वार्थ के हवाले से काम करेंगे तो असफलता तय है। अंत में, हर निर्णय का भार जनता पर ही पड़ेगा।
Suresh Chandra
अक्तूबर 27, 2025 AT 04:24समझदार बनें, नई पहल से पहले पुरानी सफलताओं को देखना चाहिए 😊
Digital Raju Yadav
अक्तूबर 30, 2025 AT 15:44आशा है कि अगली बातचीत में सब मिलकर एक मजबूत समाधान निकालेंगे। हम सबका सहयोग जरूरी है।
Dhara Kothari
अक्तूबर 31, 2025 AT 19:31मैं इस बहस की गहराई को समझता हूँ, लेकिन हमें शांति की ओर बढ़ना होगा।
Sourabh Jha
नवंबर 4, 2025 AT 06:51देश को बाहरी दबावों से सुरक्षित रखने के लिए हमें अपने हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
Vikramjeet Singh
नवंबर 5, 2025 AT 10:37देखो, सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा है।
sunaina sapna
नवंबर 8, 2025 AT 21:57इस विषय को समझने के लिए हमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखना होगा।
संयुक्त अरब लीग का मूल उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा था, परन्तु समय के साथ राष्ट्रीय हितों ने इसे चुनौती दी।
वर्तमान परिदृश्य में, हर सदस्य की संप्रभुता को सम्मान देना आवश्यक है।
यदि हम सभी पक्षों को समान आवाज़ दें तो सहयोगी ढाँचा पुनः काम कर सकता है।
न्यायसंगत निर्णयों के लिये खुली बातचीत अनिवार्य है।
आखिर में, स्थिरता तभी संभव है जब सभी राष्ट्रों की सुरक्षा को समान महत्व दिया जाए।
Ritesh Mehta
नवंबर 10, 2025 AT 01:44सही कहा, बिना नैतिक दिशा के कोई भी गठबंधन स्थायी नहीं रह सकता।