डबल iSmart मूवी रिव्यू: राम पोथिनेनी और पुरी जगन्नाध की सीक्वल को मिले मिश्रित रिएक्शन

डबल iSmart मूवी रिव्यू: राम पोथिनेनी और पुरी जगन्नाध की सीक्वल को मिले मिश्रित रिएक्शन

फिल्म का परिचय

डबल iSmart, जो कि iSmart शंकर की बहुप्रतीक्षित सीक्वल है, ने आखिरकार सिनेमाघरों में दस्तक दी है। निर्देशक पुरी जगन्नाध और अभिनेता राम पोथिनेनी की इस फिल्म को लेकर पहले से ही काफी उत्साह था, लेकिन क्या यह फिल्म उस उत्साह पर खरी उतरी है या नहीं, आइए जानें।

फिल्म की कहानी

डबल iSmart की कहानी एक ऐसे शख्स के इर्द-गिर्द घूमती है जो अमरता प्राप्त करने के लिए अपनी यादों को दूसरे व्यक्ति के अंदर स्थानांतरित करने की कोशिश करता है। फिल्म इस असैसिन के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दिखाती है, जो अपने मिशन को पूरा करने में जुट जाता है। राम पोथिनेनी ने इसमें दोहरी भूमिका निभाई है, एक मस्तमौला शख्स और दूसरा असैसिन। उनके इस रूपांतरण ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है।

प्रदर्शन और निर्देशन

राम पोथिनेनी की एनर्जेटिक और ट्रांसफॉर्मेटिव परफॉर्मेंस को विशेष रूप से सराहा गया है। उनके किरदार की एनर्जी और इंटेंसिटी ने फिल्म को एक नया आयाम दिया है। निर्देशक पुरी जगन्नाध की इस फिल्म को उनके लिए 'परफेक्ट कमबैक' कहा जा रहा है। उनकी निर्देशन और लेखन की शैली ने फिल्म को एक ताजगी दी है, जो पहले की फिल्म से थोड़ा अलग है।

संजय दत्त की नई पारी

संजय दत्त ने इस फिल्म में 'बिग बुल' की भूमिका निभाई है, जो उनके तेलुगू डेब्यू को और भी खास बनाती है। उनका करिश्माई प्रदर्शन और दमदार संवाद अदायगी ने फिल्म में एक नयी जान डाल दी है।

फिल्म की असफलताएं

हालांकि, फिल्म को लेकर सभी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक नहीं हैं। कुछ दर्शकों का मानना है कि फिल्म की कहानी बहुत ही रूटीन और साधारण है, जिसमें कुछ नया नहीं है। ऐसे ही बहुत सारी फिल्में पहले भी आ चुकी हैं, जो यादों को स्थानांतरित करने की अवधारणा पर आधारित हैं। इससे दर्शकों को कुछ नया अनुभव नहीं हो सका।

संक्षिप्त निष्कर्ष

डबल iSmart को लेकर दर्शकों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित हैं। कुछ लोगों ने राम पोथिनेनी और पुरी जगन्नाध के प्रयासों को सराहा, तो कुछ लोगों ने फिल्म को पुनरावृत्ति और साधारण बताया। फिल्म का भविष्य अब इस पर निर्भर करेगा कि वो आने वाले दिनों में दर्शकों की कितनी रुचि बनाए रख सकती है।

13 टिप्पणि

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    monisha.p Tiwari

    अगस्त 16, 2024 AT 00:35

    डबल iSmart की कहानी तो दिलचस्प लगती है, लेकिन कुछ हिस्से थोड़े दोहराव वाले लगते हैं। राम पोथिनेनी की दोहरी भूमिका ने निश्चित ही दर्शकों को आकर्षित किया है, यही बात मैं सराहती हूँ। फिर भी, यादों को स्थानांतरित करने का विचार एक नया पंरायडाइम देता है, जो शायद फिर से प्रयोग किया जा सकता है। संजय दत्त की बिग बुल भूमिका ने थोड़ा ताज़गी लाया, परन्तु संपूर्ण कथा में गहराई की कमी महसूस होती है। कुल मिलाकर, फिल्म को मिश्रित प्रतिक्रिया मिलना स्वाभाविक है, क्योंकि हर पहलू में मजबूती और कमजोरी दोनों ही मौजूद हैं।

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    Nathan Hosken

    अगस्त 19, 2024 AT 14:42

    फिल्म के नैरेटिव स्ट्रक्चर को देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि प्रॉडक्शन टीम ने मैट्रिक्स-इंफ़्लुएंट थिम्स को एम्बेड करने का प्रयास किया है। जबकि सिनेमैटिक फ्रेमिंग काफी इनोवेटिव है, कॉम्प्लेक्सिटी लेवल को देखते हुए सामान्य दर्शक के लिए एब्स्ट्रैक्शन थोड़ा अधिक हो सकता है। इसे देखते हुए, इसे कल्चरल कंटेक्स्ट में स्मृति ट्रांसफर जैसी कॉन्सेप्ट्स का इंटीग्रेशन वाकई दिग्दर्शक की महत्वाकांक्षा दर्शाता है।

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    Manali Saha

    अगस्त 23, 2024 AT 04:49

    क्या धांसू एक्शन था!!!

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    jitha veera

    अगस्त 26, 2024 AT 18:55

    डबल iSmart को लेकर जो हलचल है, वह बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। निर्देशक पुरी जगन्नाध ने अपनी पहले की फिल्मों से कोई नई कल्पना नहीं लाया, बस वही पुरानी फॉर्मूला दोहराया है। राम पोथिनेनी की दोहरी भूमिका को लेकर लोग भला चुपचाप हेलेट हो रहे हैं, पर यह वास्तव में बस एक दिखावे वाला प्रयास है। स्मृति ट्रांसफर की कहानी पहले भी कई बार थियेटर में देखी जा चुकी है, फिर भी इसे फिर से उतना नहीं दोहराना चाहिए। फिल्म की स्क्रिप्ट में गहराई की कमी है, और संवाद अक्सर कच्चे और असहज लगते हैं। संजय दत्त का बिग बुल किरदार भी केवल शोरगुल पैदा करने के लिए है, कोई वास्तविक चरित्र विकास नहीं दिखता। विजुअल इफेक्ट्स को देखते हुए भी, वे अधुरे और कभी-कभी बेफिजूल लगते हैं। संगीत ट्रैक, जो कि फिल्म को ऊँचा उठाने चाहिए था, वह भी असंगति से भरपूर है। संपादन की गति कभी तेज़, तो कभी बहुत खींची हुई है, जिससे दर्शक थके बिना नहीं रह पाते। इस प्रकार की असंगति दर्शकों को भ्रमित करती है और फिल्म की पूरी पोटेंशियल को समाप्त कर देती है। कास्ट की कोशिशों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, पर उनका कौशल बिना सही परिदृश्य के व्यर्थ रहता है। फिल्म को 'परफेक्ट कमबैक' कहना, सिविलाइज़्ड आलोचना के मानकों के साथ नहीं है। यदि निर्देशक ने इस कहानी को वास्तव में नया मोड़ देना चाहा होता, तो वह कहीं और से प्रेरणा लेता। अंत में, यह कहना उचित होगा कि यह फिल्म एक बड़ी निराशा है, जिसके कारण कई दर्शक अपने समय और पैसे का नुकसान महसूस करेंगे। भविष्य में यदि ऐसी ही दोहराव वाली फिल्में बनती रहें, तो दर्शकों का भरोसा धीरे-धीरे कम होता जाएगा।

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    Sandesh Athreya B D

    अगस्त 30, 2024 AT 09:02

    ओह भाई, डबल iSmart की सीक्वल देख कर तो मैं आज भी हैरान हूँ, जैसे कि 2010 की कोई पुरानी डिश फिर से रिफ्रेश की गई हो। दोहरी भूमिका? अरे वाह, अब तो सब एक ही तरह के हीरो-हीरोइन बन गए हैं। संजय दत्त का बिग बुल तो बस एक एक्स्ट्रा टॉपिक बन गया, जैसे कि कॉफी में चाय डाल देना। इन सब के बीच, कहानी की गहराई तो औरे एक काली बूँद जैसी घुल गई। फिर भी, कुछ लोगों को लगता है कि यह सब बहुत ही मज़ेदार है, है ना?

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    Jatin Kumar

    सितंबर 2, 2024 AT 23:09

    सही में, फिल्म ने कुछ नया लाने की कोशिश की है, पर शायद execution थोड़ा off रहा। फिर भी, राम पोथिनेनी की ऊर्जा को हम नहीं छोड़ सकते, वह हमेशा ही दर्शकों को उत्साहित रखता है 😊। आशा है कि अगली बार निर्देशक थोड़ा और प्रोटोकॉल फॉलो करेंगे।

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    Anushka Madan

    सितंबर 6, 2024 AT 13:15

    फ़िल्म में नैतिकता की कमी स्पष्ट दिखती है; स्मृति को बेचने जैसा विचार किसी भी सामाजिक मानदंड के विरुद्ध है। कलाकारों की मेहनत को देखते हुए भी, ऐसी विचारधारा का समर्थन नहीं किया जा सकता। हमें फ़िल्मों को सामाजिक जिम्मेदारी के साथ देखना चाहिए, न कि केवल मनोरंजन के रूप में।

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    nayan lad

    सितंबर 10, 2024 AT 03:22

    समझ सकता हूँ कि आप नैतिक पहलू पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन फ़िल्म का मुख्य लक्ष्य दर्शकों को आनंदित करना ही था। इस तरह की चर्चा भी ज़रूरी है।

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    Govind Reddy

    सितंबर 13, 2024 AT 17:29

    स्मृति के स्थानांतरण की अवधारणा हमारे अस्तित्व के प्रश्न को उजागर करती है, जैसे कि हम कौन हैं और हमारे विचार कितने स्थायी हैं। यह फ़िल्म एक प्राचीन दार्शनिक खोज के समान है, जहाँ आत्मा और मस्तिष्क के बीच की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। हालांकि, यदि हम इस विचार को गहराई से नहीं खोजते, तो यह केवल सतही प्रभाव तक ही सीमित रह जाता है। यह विचार हमें हमारे स्वयं के 'iSmart' बनने की दिशा में प्रेरित कर सकता है, बशर्ते हम इसमें गहराई से प्रवेश करें।

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    KRS R

    सितंबर 17, 2024 AT 07:35

    आपका दार्शनिक दृष्टिकोण रोचक है, पर फ़िल्म में वही गहिराई नहीं दिखती। इसे देख कर लगता है कि निर्माता सिर्फ ठोस प्रभाव बनाने में लगे हैं, विचारों की नहीं। फिर भी, दर्शक को थोड़ा सोचने का मौका मिलता है।

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    Uday Kiran Maloth

    सितंबर 20, 2024 AT 21:42

    डबल iSmart के केस स्टडी को विश्लेषणात्मक लेंस से देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि प्रोडक्शन वैरिएबल्स में कुछ प्रमुख डिफ़ेक्ट्स मौजूद हैं। पहला, कंटेंट डिलिवरी का पेसिंग अपर्याप्त है, जिससे एंगेजमेंट मैट्रिक्स पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरा, नेरेटिव कॉम्प्लेक्सिटी को दर्शकों के कलेक्टिव इंटेलिजेंस लेवल के साथ सिंक्रोनाइज़ नहीं किया गया। इसलिए, फॉर्मेटिव फीडबैक लूप्स की अपर्याप्तता ही इस फ़िल्म की मुख्य कमजोरी है। भविष्य में सुधार हेतु, प्री-प्रॉडक्शन में अधिक स्ट्रैटेजिक प्लानिंग की आवश्यकता होगी।

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    Deepak Rajbhar

    सितंबर 24, 2024 AT 11:49

    वाह, इतना तकनीकी जार्गन सुनकर तो लगता है जैसे हम किसी वैज्ञानिक सम्मेलन में हैं, जबकि ये तो सिर्फ एक फ़िल्म है 😏। आपका विश्लेषण सही है, लेकिन कभी-कभी दर्शक भी सादगी पसंद करते हैं। आशा है अगली बार थोड़ा एंटरटेनमेंट भी मिले।

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    Hitesh Engg.

    सितंबर 28, 2024 AT 01:55

    डबल iSmart ने निश्चित ही कुछ पहलुओं में नई ऊर्जा लाई है, जैसे कि राम पोथिनेनी की दोहरी अभिनय शैली, जिसने दर्शकों को काफी रोमांचित किया। साथ ही, संजय दत्त का बिग बुल किरदार भी एक ताज़ा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो फ़िल्म को अतिरिक्त लेयर देता है। फिर भी, कहानी की दोहराव वाली संरचना ने कुछ दर्शकों को निराश किया, क्योंकि स्मृति ट्रांसफर जैसी अवधारणा पहले भी देखी जा चुकी है। इस प्रकार, फ़िल्म का मिश्रित प्रतिक्रिया प्राप्त करना आश्चर्यजनक नहीं है। अंत में, यह कहना उचित होगा कि यदि निर्देशक भविष्य में अधिक नवाचार और गहराई पर ध्यान दें, तो यह फ्रैंचाइज़ी नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकती है।

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