Milkipur बाय-एलेक्शन 2025: BJP ने 61,000 वोट के अंतर से जीत दर्ज की

Milkipur बाय-एलेक्शन 2025: BJP ने 61,000 वोट के अंतर से जीत दर्ज की

Milkipur बाय-एलेक्शन 2025 का नतीजा

उत्त प्रदेश के आयोध्या जिले में हाल ही में हुए Milkipur बाय-एलेक्शन में भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की। उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान ने 1,46,397 वोटों के साथ जीत के सिरे पर पहुंचते हुए, समजवादी पार्टी के अजित प्रसाद को 61,710 वोटों के अंतर से मात दी। यह अंतर इस सीट के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा रेकॉर्ड बन गया, जबकि पहले का अधिकतम अंतर 2012 में 34,237 वोट रहा था।

बाई-एलेक्शन का कारण यह था कि पिछले MLA ने लोकसभा सीट जीती थी, जिससे इस एरिया में खाली पद भरना पड़ा। चुनावी माहौल बहुत गरम था; दोनों बड़ी पार्टियों ने अपने-अपने दांव लगाए थे और आयोध्या को एक प्रतिष्ठा की लड़ाई माना गया था। भाजपा ने यूपी के उपमुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्या सहित कई वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारा, जबकि सपा ने अखिलेश यादव की पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की।

राजनीतिक असर और आगे की राह

बाजपा के सांसद रवि किशन ने जीत को ‘मोदी‑यौगी मैजिक’ कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रयागराज में चल रहे महा कुंभ मेले ने पार्टी की छवि को और मजबूत किया। उपमुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने इस नतीजे को सपा की ‘गुंडों को खुश करने’ की नीति के खिलाफ एक वोट बताया और अखिलेश यादव के चुनाव आयोग के खिलाफ ‘असंवैधानिक’ बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा, "अब जाखी है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है" – यानी यह जीत 2027 के बड़े चुनावों का सिर्फ एक ट्रेलर है।

सपा के नेता अखिलेश यादव ने जीत के बाद मतदान प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस एक सीट में हुए गड़बड़ी का असर पूरे 403 सीटों पर नहीं पड़ेगा। इससे साफ़ है कि सपा का इरादा अभी भी 2027 के विधानसभा चुनावों में आगे बढ़ने का है, लेकिन उन्हें भरोसा है कि इस तरह की धोखाधड़ी पूरी राज्य में नहीं चल पायेगी।

फिर भी, चुनाव परिणाम को देखते हुए कई विश्लेषक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भाजपा की जीत केवल एक व्यक्तिगत लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में पार्टी की लोकप्रियता की पुष्टि है। पिछले 2017 में भी यही क्षेत्र भाजपा के हाथों में रहा था, जब बाबा गोरखनाथ ने 86,960 वोटों से जीत हासिल की थी। आज का अंतर काफी बड़ा है, जिससे स्पष्ट होता है कि भाजपा के पास इस क्षेत्र में ठोस आधार है।

यहाँ के अन्य उम्मीदवारों की भी थोड़ी झलक देते हैं:

  • संतोष कुमार (आज़ाद समाज पार्टी) – 5,459 वोट
  • राम नारायण चौधरी (मौलिक अधिकार पार्टी) – 1,722 वोट
  • कई स्वतंत्र उम्मीदवारों ने बिखरे हुए वोटों के साथ भाग लिया

ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा की जीत का अंतर अन्य सभी उम्मीदवारों के संयुक्त वोटों से भी अधिक था, सिवाय सपा के प्रमुख उम्‍मीदवार के। इस तरह का अंतर दर्शाता है कि नहीं सिर्फ़ वोटों की संख्या, बल्कि स्थानीय स्तर पर पार्टी के संगठन, कैंपेन और संसाधनों का भी बड़ा असर रहा।

आगे क्या होगा, इस सवाल का जवाब अभी स्पष्ट नहीं है। 2027 के विधानसभा चुनावों में सभी आँखें इस क्षेत्र पर टिकी रहेंगी। अगर भाजपा इस गति को बना रखे, तो वह उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ को और मजबूत कर सकती है। वहीं, सपा को अब अपनी फील्ड रणनीति, गठबंधन और वोटर बेस को फिर से ताजा करने की जरूरत होगी, ताकि वे अगले बड़े चुनाव में अपनी स्थिति को बरकरार रख सकें।

जैसे ही चुनाव आयोग ने परिणाम आधिकारिक तौर पर घोषणा किया, दोनों पार्टियों के समर्थकों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं। भाजपा के समर्थकों ने उत्सव का माहौल बनाते हुए गली‑गली में जयकारें लगाईं, जबकि सपा के समर्थकों ने हल्के-फुल्के नाराज़गी के साथ प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने वोटिंग प्रक्रिया की पारदर्शिता की मांग की।

उद्या के चुनावीय परिदृश्य में Milkipur की यह जीत एक महत्वपूर्ण संकेतक बन गई है। चाहे आप भाजपा के पक्ष में हों या सपा के, यह साफ़ है कि अगले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई मोड़ आएंगे, और इस छोटे से बाय‑एलेक्शन ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या यह जीत सपा के लिए एक चेतावनी है या भाजपा की लहर का केवल एक छोटा हिस्सा?