शाहिद कपूर की फिल्म 'देवा' - मनोरंजन से दूर, पूर्वानुमानित कहानी की एक और गाथा

शाहिद कपूर की फिल्म 'देवा' - मनोरंजन से दूर, पूर्वानुमानित कहानी की एक और गाथा

शाहिद कपूर और फिल्म 'देवा'

भारतीय सिनेमा की दुनिया में शाहिद कपूर का नाम अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके फैंस हमेशा उनकी नई और अनोखी भूमिकाओं को लेकर उत्सुक रहते हैं। ऐसे में जब उनकी नई फिल्म 'देवा' आई, तो लोगों की उम्मीदें काफी बढ़ गईं। लेकिन फिल्म के रिलीज़ होने के बाद यह साफ हो गया कि सिर्फ एक महान अभिनेता फिल्म को सफल नहीं बना सकता। 'देवा' एक ऐसी फिल्म है, जो पूर्वानुमानित कहानी और कमजोर लेखन के चलते दर्शकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी।

फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर ने देव अम्ब्रे नामक एक तेजतर्रार पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाया है। फिल्म की शुरुआत में देव अपने साहसी कारनामों और एक कुख्यात अपराधी का सामना करने की साहसिक कहानी के माध्यम से दर्शकों को आकर्षित करते हैं। लेकिन एक दुर्घटना के बाद, जब देव याददाश्त खो देते हैं, तो कहानी एक नया मोड़ लेती है। यह अस्वाभाविक घटना देव को अपने दोस्त की हत्या के रहस्य को खुद की कमज़ोर याददाश्त के टुकड़ों के जरिए सुलझाने पर मजबूर कर देती है।

फिल्म की कहानी और निर्देशन

फिल्म 'देवा' मूल रूप से मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' का हिंदी रूपांतरण है। रोशन एंड्र्यूज ने निर्देशन का जिम्मा सम्भाला है, लेकिन फिल्म के निर्माण से संबंधित कई कमजोरियों पर ध्यान नहीं दिया गया। कहानी में जबरदस्त ट्विस्ट की कमी और कई जगह पर सामान्य चलचित्र टेम्पलेट का पालन किया गया है। कथानक में नया कुछ देखने को नहीं मिलता और यही कारण है कि फिल्म पर्याप्त प्रभाव नहीं डाल पाती।

कई दर्शकों ने यह महसूस किया है कि फिल्म की पटकथा और इसकी गति, दोनों ही इसकी सबसे कमजोर कड़ियाँ हैं। फिल्म का प्रवाह बँधा हुआ महसूस नहीं होता और यही कारण है कि जब कहानी चरमोत्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश करती है, तब तक दर्शक उसका साथ छोड चुके होते हैं।

उपयोग किए गए तत्व और प्रस्तुति

फिल्म में कई प्रसिद्ध चेहरे नजर आते हैं, जिनमें पूज हेगड़े भी शामिल हैं। उन्होंने देव की प्रेमिका के तौर पर अपनी भूमिका निभाई है, लेकिन उनके किरदार को सही से उभारा नहीं गया। वे एक अनचाही भूमिका में दिखाई देती हैं, जहाँ उनका उपयोग केवल कहानी के आगे बढ़ने में किया गया।

फिल्म में एक्शन और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को मिश्रित करने की कोशिश की गई है, लेकिन यह संयोजन भी अंततः प्रचलित क्लिशेज़ में खो जाता है। फिल्म में एक्शन सीक्वेंस उम्मीद के मुताबिक बेहतरीन है, लेकिन यह उन ड्रामाटिक घटनाओं की भरपाई नहीं कर पाता, जो दर्शकों को आकर्षित करने में विफल रहती हैं।

कहानी का समापन

'देवा' के अंत तक पहुँचते-पहुँचते दर्शकों को यह एहसास हो जाता है कि फिल्म ने एक बेहतरीन कलाकार के बावजूद उस कहानी से ज्यादा कुछ नहीं बनाया जो शुरुआत में वादा करती थी। शाहिद के अभिनय में कोई कमी नहीं है; वे अपने हर दृश्य में जीते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश कहानी उस स्तर की नहीं है। पूरी फिल्म में बस कपूर का एक उजला हिस्सा है, जो अपने दम पर इसे देखने लायक बनाता है, लेकिन यह उसके कथानक की अवनतिमें कामयाब नहीं हो पाती।