दिल्ली हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की जमानत पर लगाई रोक, सीबीआई ने दस्तक दी
दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मिली जमानत पर रोक लगा दी है। इस फैसले ने न केवल राजनीतिक हलचलों को बढ़ा दिया है, बल्कि कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। उक्त आदेश एक ट्रायल कोर्ट द्वारा केजरीवाल को जमानत दिए जाने के फैसले को चुनौती देने के बाद आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने ट्रायल कोर्ट के 20 जून के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें केजरीवाल को जमानत दी गई थी।
सीबीआई की गतिविधियाँ
सीबीआई ने केजरीवाल से दिल्ली एक्साइज नीति से जुड़े एक अलग मामले में पूछताछ की है। जिसमें यह उल्लेखनीय है कि केजरीवाल तिहाड़ जेल में इस समय बंद हैं। सीबीआई ने अब अदालत से केजरीवाल की कस्टडी लेने की योजना बनाई है। यह नाटकीय घटनाक्रम तब हुआ जब केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल तिहाड़ जेल में रखा गया है।
आप का आरोप
आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस पूरे घटनाक्रम को भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के खिलाफ एक 'साजिश' करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने सीबीआई के साथ मिलकर केजरीवाल को झूठे मामले में फंसाने और गिरफ्तार करवाने की योजना बनाई है।
हाई कोर्ट का अवलोकन
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने 34-पृष्ठीय फैसले में ट्रायल कोर्ट के आदेश को 'दुराग्रहपूर्ण' करार दिया और कहा कि यह प्रतिद्वंद्वी पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री का ठीक से ध्यान नहीं रखता। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट के जज ने ईडी द्वारा प्रस्तुत सामग्री और दलीलों का उचित अवलोकन नहीं किया। जिसके चलते उन्होंने जमानत दिए जाने के आदेश में लापरवाही दिखाई।
सुप्रीम कोर्ट का स्टैंड
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि वे हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे और 26 जून को केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई करेंगे। इस सारे प्रकरण ने न केवल राजनीतिक मोर्चे पर, बल्कि न्यायिक व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर कर दिया है।
राजनीति का नया मोड़
इस ताजा घटनाक्रम ने दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। राष्ट्रीय राजधानी में अरविंद केजरीवाल की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी सरकार के कामकाज पर पहले से ही कई प्रश्न उठते रहे हैं। ऐसे में यह नया मोर्चा उनके लिए और आप पार्टी के लिए चुनौतियों को और भी बढ़ा सकता है।
भाजपा और आप के बीच कटाक्ष और आरोप-प्रत्यारोप का इस पूरे मामले में क्या नतीजा निकलेगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में भी प्रमुखता से उभर कर सामने आ सकता है।